लेखनी प्रतियोगिता -01-Mar-2023 मोहब्बत
देवी के जीवन में कभी जब सुख या दुख आता था, तो वह कमरे की खिड़की खोल कर एक टक से सामने लगे बरगद के पेड़ को पलंग पर लेट कर देखती रहती थी। विशाल बरगद के पेड़ के बड़े-बड़े गुद्दे हरे हरे पत्ते पेड़ पर बैठी छोटी छोटी चिड़ियां कबूतर चील कौवे चिड़ियों के घोंसले आदि देखकर उसका दुख कम हो जाता था और खुशी बढ़ जाती थी। जैसे कि माता पिता मित्र या भाई बहन या अन्य परिवार के सदस्य या फिर रिश्तेदार की तरह उस बरगद के पेड़ ने देवी के मन की सारी बात सुन ली हो।
जिस रोड के किनारे यह बरगद का पेड़ था वहां सप्ताह में मंगलवार के दिन बाजार लगता था, जब देवी दस वर्ष की थी तो उसने अपने कमरे की खिड़की में से देखा कि एक मंगल बाजार का दुकानदार उस बरगद के पेड़ के नीचे दुकान लगाने से पहले अपना समाज पेड़ पर टांगने के लिए उस पेड़ पर कीलें गाड़ रहा है। यह दृश्य देखने के बाद देवी की आंखों से आंसू टपकने लगते हैं। उस दिन पेड़ के दुख से रोता देख उसके बड़े भाई ने उसकी बहुत मजाक उड़ाई थी। इस बात से उसके मम्मी पापा भी खूब हंसे थे।
गर्मियों के दिनों में जब भी देवी अपने कमरे की खिड़की खोल कर उस पेड़ को देखती थी, तो उस पेड़ की छाया में कभी आइसक्रीम वाला या कोई अन्य समान घूम घूम कर बेचने वाला या फिर कोई मजदूर मुसाफिर बैठा हुआ या खाना खाता हुआ दिखाई देता था। क्योंकि किसी ने उस पेड़ के नीचे दो पानी के मटके भर कर रख दिए थे। देवी को बरगद के पेड़ को देखकर ऐसा लगता था जैसे मां अपने बच्चे को पास बिठाकर प्यार से खाना खिला रही हो।
उन दिनों देवी दसवीं कक्षा की पढ़ाई कर रही थी, जैसे ही देवी ने पढ़ाई शुरू करने से पहले अपने कमरे की खिड़की खोली तो देखा कि कुछ महिलाएं बच्चे उस पेड़ की नई फूटती किल्लियां अपने-अपने थैले में इकट्ठा कर रहे हैं। जब देवी ने मां से पूछा तो मां ने बताया कि यह लोग इसको सब्जी जैसे पका कर खाएंगे। उस दिन देवी को बरगद के पेड़ को देखकर ऐसा लगा जैसे कि वह माता पिता जैसे खाने के लिए भी देता है।
देवी के लिए वह बरगद का पेड़ अलार्म घड़ी जैसे भी काम करता था क्योंकि उस बरगद के पेड़ पर छोटे-छोटे गूलर बहुत आते थे, इसलिए उस पेड़ पर रात को चमगादड़ और दिन में पक्षियों का मेला लगा रहता था। और उस विशाल बरगद के पेड़ पर बहुत से पक्षियों के घोंसले भी थे और यह सारे पक्षी सुबह अलार्म घड़ी जैसे चहचहाना शुरु कर देते थे।
एक दिन कुछ बच्चे उस पेड़ से अपनी पतंग उतार रहे थे, जब पतंग उतारने में असफल हो जाते हैं तो वह लगी में तेज धार वाली दरांती बांध कर लाते हैं। और पतंग उतारने के चक्कर में पेड़ की हरी हरी टहनियां काटने लगते हैं। देवी को इस बात का दुख होता है कि जब करोना काल में ऑक्सीजन को लेकर इतना शोर शराबा हो रहा था, तो यह पेड़ और बाकी कुदरत हमें ताजा हवा ऑक्सीजन मुफ्त बांट रहे थे। और जब तक पेड़ पौधे जीवित रहते हैं। जब तक ऑक्सीजन बढ़ते रहते हैं। लेकिन वहां से आने जाने वाला एक भी स्त्री-पुरुष ऐसा नहीं था, जो इन बच्चों को हरी हरी टहनियों को काटने से रोके। देवी सोचती है की दुनिया को सोचना चाहिए धूप हो या बारिश पेड़ का सहारा चाहिए, वर्षा पेड़ों के कारण ही होती है। दरवाजे खिड़की फल फूल सब्जियां गरम मसाले रुई शहद आदि ना जाने कितनी चीजें पेड़ पौधों से ही हमें मिलती है। और यह दुनिया कुदरत से अपने परिवार जैसे मोहब्बत क्यों नहीं करती हैं, जब की कुदरत हमसे हमेशा मोहब्बत करती है। और दुनिया को अपना सब कुछ समर्पित कर देती है।
एक दिन देवी के बड़े भाई का फोन देवी के पति के पास आता है। देवी के पति से देवी का बड़ा भाई कहता है कि "पिताजी का निधन हो गया है लेकिन देवी को पापा के निधन की खबर बिना बताए मायके लेकर लाना।" जब देवी के सास ससुर देवी और उसके पति के साथ तैयार होकर देवी के मायके आने लगते हैं, तो देवी को शक हो जाता है कि मेरे मायके में कोई अप्रिय घटनाओं घट गई है। यह सोचकर वह रोने लगती है। और उसकी आंखों के सामने पापा मम्मी भाई और उस बरगद के पेड़ का दृश्य घूमने लगता है। और घर पहुंच कर अपने पापा के मृत शरीर को देखकर देवी रोते-रोते बेहोश हो जाती है।
पापा कि तेरहवीं और सारे रीति रिवाज पूरे होने के बाद देवी वापस अपनी ससुराल जाने की तैयारी करती है, तो अचानक आकर देवी का पति देवी के कमरे की खिड़की खोल देता है। देवी जैसे ही खिड़की में से बरगद के पेड़ की तरफ देखती है, तो उसे पापा की मृत्यु जितना ही दुख दोबारा महसूस होता है। और देवी पति के कंधे पर सर रखकर रोने लगती है, क्योंकि मेट्रो के रास्ते में आने के कारण उस बरगद के पेड़ को मेट्रो के अधिकारियों ने जड़ से कटवा दिया था।
देवी अपने पति के साथ उस स्थान पर जाती है जहां हरा-भरा बरगद का पेड़ कभी लगा हुआ था। कटे हुए बरगद के पेड़ की जड़ों को प्यार से चूमती है। तभी उसकी नजर एक छोटे से बरगद के पौधे में पढ़ती है। जो उसी पुराने बरगद के पेड़ के बीज से उपजा था। उस पौधे को अपनी ससुराल ले जाकर ऐसी जगह बोती है, जहां से वह पौधा उसे अपनी खिड़की से साफ दिखाई दे। देवी का पति देवी को सीने से लाकर कहता है कि "वाह तुम्हारी कुदरत से मोहब्बत बेमिसाल है।" देवी अपने पति से कहती है कि "क्या तुम्हें पता है की कुदरत की भी मोहब्बत हमसे बेमिसाल है।"
अदिति झा
02-Mar-2023 08:45 PM
Nice 👍🏼
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Ajay Tiwari
02-Mar-2023 08:48 AM
Very nice
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Punam verma
02-Mar-2023 08:11 AM
Very nice
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